आषाढ़ी एकादशी, 2025: आस्था, भक्ति और व्रत का महापर्व

भारतवर्ष में कई पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन आषाढ़ी एकादशी  का अलग महत्व है। यह दिन सिर्फ उपवास का दिन नहीं है; आत्मशुद्धि, भक्ति और श्रीविष्णु की आराधना का पर्व है। यह व्रत “शयनी एकादशी” या “देवशयनी एकादशी” भी कहलाता है, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में 8 जुलाई (मंगलवार) को यह पावन दिन मनाया जाएगा। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व, उसकी कथा, पूजा विधि और इससे जुड़े विश्वासों को।

आषाढ़ी एकादशी: क्या है?

हिंदू धर्म में वर्ष की 24 एकादशियों में से आषाढ़ी एकादशी सबसे महत्वपूर्ण है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने (चातुर्मास) योगनिद्रा में चले जाते हैं। उस समय विवाह करना, घर में प्रवेश करना जैसे मांगलिक कार्य वर्जित हैं। यह व्रत पापों को दूर करने और मोक्ष पाने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान विष्णु को श्रद्धापूर्वक पूजता है, उसे सभी पापों से छुटकारा मिलता है और वैकुंठ धाम पाता है।

पुराण (व्रतकथा)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार  राजा मान्धाता ने अपने राज्य में भारी सूखा  भारी सूखा पड़ने पर महर्षि अंगिरा से समाधान पूछा। तब ऋषि ने उन्हें आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत रखने का परामर्श दिया।  राजा ने पूरी श्रद्धा से यह व्रत किया, जिससे राज्य में वर्षा हुई और प्रजा को राहत मिली।

इस व्रत की कथा श्रीविष्णु से जुड़ी है, जिसमें कहा गया है कि चार मास तक भगवान क्षीर सागर में योगनिद्रा में रहते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी)) को जागते हैं। इसलिए भक्तगण इस दिन विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं ताकि विष्णुजी की कृपा उन पर बनी रहे।

पूजा की प्रक्रिया

यद्यपि आषाढ़ी एकादशी की पूजा की विधि सरल है, लेकिन यह बहुत प्रभावशाली है: प्रातः स्नान करके व्रत करना शुरू करते हैं। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को शुद्ध स्थान पर रखकर पीले कपड़े पहनाए जाते हैं। तुलसी पत्र, पीले पुष्प, फल और पंचामृत लगाकर पूजन करते हैं। विष्णु स्तोत्र,विष्णु सहस्रनाम या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  मंत्र का जाप किया जाता है। रात को जागरण और भजन-कीर्तन भी होते हैं। अगले दिन द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण होता है।

महाराष्ट्र का खास महत्व: पंढरपुर की सैर

महाराष्ट्र में आषाढ़ी एकादशी विशेष उत्साह से मनाई जाती है। इस दिन लाखों वारी (भक्त) पंढरपुर में भगवान विट्ठल को देखने के लिए पैदल चलते हैं, जिसे “वारी यात्रा” कहते हैं। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही यह परंपरा है। इस दिन संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर की पालखी यात्रा पंढरपुर पहुंचती है। देश-विदेश से श्रद्धालु इस अद्भुत आस्था और भक्ति को देखने आते हैं।

मानसिक लाभ

आषाढ़ी एकादशी व्रत को  मानसिक और शारीरिक शुद्धि का माध्यम माना जाता है। यह उपवास विषैले पदार्थों से शरीर को मुक्त करता है, मन को शांत  करता है और आत्मा को शुद्ध करता है। यह दिन साधना, संयम और तप का प्रतीक है।

निष्कर्ष

आषाढ़ी एकादशी 2025 न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि भक्ति और आत्मविकास का एक प्रभावी माध्यम भी है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि भगवान की भक्ति, संयम और सेवा करने से जीवन में मोक्ष, सुख और शांति मिल सकती है।  हम भी इस वर्ष आषाढ़ी एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और विश्वास से करें और अपने जीवन को पुण्यमय बनाएं।

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